V.S Awasthi

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हिन्दी दिवस




गरीबी
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गरीबी एक अभिशाप है, 
गरीब होना पाप  है
फटे चिथड़े कपड़े
धूल ओर गंदगी 
से बाल जकड़े
जर जर शरीर
नंगे पैर भटकता फकीर
बड़े बड़े गन्दे बाल
हड्डियों में चिपकी खाल
पीठ से चिपका पेट
बिना पैसे खाली टेंट
फटे हांथ पैरों में बिंवाई
आंखों में आंसू और रुवाई
क्या गरीब की यही 
पहचान है मेरे भाई
नहीं
काम की तलाश में
भूख और प्यास में
रोटी मिलने की आस में
हांथ पैर पटकना
गली गली भटकना
धनवानों की गालियां सुनना
कुछ ना मिलने पर
दोनों हाथों से सिर धुन ना
मिठाई की दुकान पर
कुत्तों से छीन कर
झूठे पत्ते चाटना
दुकान मालिक द्वारा डांटना
नींद आने पर
सड़क के किनारे
भगवान के सहारे
अखवार बिछा कर
सो जाना
ठंड लगने पर
कूड़े के ढेर पर 
आग तापना
रात काटना
फिर सुबह होने पर
खाने की तलाश में
मिलने की आस में
गली गली भटकना
हांथ पैर पटकना
एक तरफ बेटा
एक तरफ बाप
यही गरीबी की है माप
सरकारें गरीबी नहीं हटा पाईं 
परन्तु35 रु. रोज पर 
गरीबी की माप ले आईं
गरीबों की झोपड़ी तोड़ कर
ऊंची उंची अट्टालिका यें बनाईं
कवि विद्या शंकर अवस्थी पथिक कल्यानपुर कानपुर

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6 Comments

बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ

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Renu

08-Sep-2022 08:43 PM

Nice

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Reena yadav

08-Sep-2022 04:04 PM

Very nice 👍

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